Saturday, February 1, 2020

उर्मिला ने सीएए की तुलना अंग्रेजों के रॉलेट एक्ट से की, बोलीं- इतिहास में इसे काले कानून के रूप में दर्ज किया जाएगा

अभिनेत्री और पूर्व कांग्रेस नेता उर्मिला मातोंडकर ने सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) का विरोध करते हुए इसकी तुलना अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए रॉलेट एक्ट से की है। उनका कहना है कि सीएए को इतिहास में काले कानून के रूप में याद रखा जाएगा। ये बात उन्होंने गुरुवार महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर पुणे में सीएए और एनआरसी के विरोध में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। 


कार्यक्रम के दौरान उर्मिला ने कहा, '1919 में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अंग्रेज समझ गए थे कि पूरे भारत में असंतोष फैल रहा है, जो कि दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद और भी बढ़ सकता है। इसलिए वे एक कानून लेकर आए जिसे आमतौर पर रॉलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है। 1919 के उस कानून और नागरिकता संशोधन अधिनियम को इतिहास में काले कानून के रूप में दर्ज किया जाएगा।'


गांधीजी के बारे में बात करते हुए उर्मिला ने कहा, 'गांधीजी किसी एक देश के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के नेता थे। मेरे हिसाब से अगर किसी ने हिंदू धर्म का सबसे ज्यादा पालन किया तो वो गांधीजी थे।' वहीं गांधीजी के हत्यारे को लेकर वो बोलीं, 'जिस व्यक्ति ने गांधीजी को मारा ना तो वो मुस्लिम था और ना ही वो सिख था। वो एक हिंदू व्यक्ति था और इस बारे में ज्यादा बताने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है।'


उर्मिला से हो गई गलती


अपने बयान में उर्मिला ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध 1919 में खत्म हुआ था। जबकि दूसरा विश्व युद्ध 1939 से 1945 के बीच लड़ा गया था। इस गलती के बाद उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया गया। उर्मिला ने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुंबई उत्तर सीट से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, हालांकि वे हार गई थीं। इसके बाद पिछले साल सितंबर में उन्होंने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।


क्या था रॉलेट एक्ट?


अंग्रेजी राज के दौरान 1919 में भारत में उभरे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट का निर्माण किया था। यह कानून सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वो किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सके। इस कानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था। इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जुलूस और प्रदर्शन हुए थे।